अपना घर
अपना घर
मुझे अपना ही घर लगता प्यारा है
चाहे नहीं है दो मंजिला चाहे नहीं चौबारा है
फिर भी मुझे अपना ही घर लगता प्यारा है
दो कमरे और एक छत है
बहुत ज्यादा नहीं पर बहुत है
ना कीमती साजो समां से इसे सजाया है
ना संगमरमर कहीं लगवाया है
ना भव्य ना आलीशान है
फिर भी ये वो मकान है
यहाँ जिन्दगी का इक हिस्सा गुजारा है
इसलिए मुझे अपना ही घर लगता प्यारा है
बड़ी मेहनत मुश्कत से इसे बनाया है
इन हाथों से कभी ईटें कभी गारा उठाया है
मेरी मेहनत का ये स्मारक मेरा सरमाया है
यहीं मैंने वक़्त बदलते देखा है
इसकी चौखट से खुशियों का सूरज निकलते देखा है
इसी में बसता छोटा सा संसार हमारा है
इसलिए मुझे अपना ही घर लगता प्यारा है
चाहे नहीं है दो मंजिला चाहे नहीं चौबारा है।