Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

4  

सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Romance

अनुबंध

अनुबंध

1 min
260



बिसर न पाई सुधियों को

बार-बार होठों पर जन्मी सौगंध

महक रही साँसों में मेरे

आज तलक उनके तन की गंध। 


खिल रही करतल पर मेंहदी

लालिमा लिये कोमल करन

जिनकी इक छुवन से खिलती

बुझे उर में सुवासित अगन 

आतुर हो-हो उठते तशन

जब बंधती आलिंगन के बंध। 


कजरारी-सी अँखियों का काजल

कूलों पर मुस्कुराता अंजन

ताकते रहते अनुरागी चितवन

झील-सी अँखियों में डूब गया है मन

छोड़ा था मैनें अस्मिता का दामन

तोड़े थे लाखों प्रतिबंध। 


अब तो बस गये पलकों पर वीरानी

व्याकुल हृदय में है कोलाहल

अश्रु पी रही प्यासी पिपासा

भटक रहा बेकल अंतर्मन मरुस्थल

दूर हुई अँखियों से निंदियाँ

बंधे अंतस् के संग अनुबंध। 


न जाने कितनी बार पूँछे हमसे

पता तुम्हारा उतरती संझाओं ने

खोई-खोई राहों पर हमने

पुकारा आती-जाती झंझाओं से

रोक लेती हैं कदमों को मेरे

अनछुई कलियों की सुगंध। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance