अंतरात्मा की आवाज
अंतरात्मा की आवाज
जब जिंदगी में हो गया था मैं बिल्कुल निराश
जब जीवन में बची ना थी कोई भी आस।
ना ही किसी पर था मुझको विश्वास।
हार कर लड़खड़ा करके बैठ गया था जब मैं।
उम्मीदों का दामन भी जब छोड़ चुका था मैं।
अपने पराए हो चुके थे
सपने भी सारे बिखर चुके थे।
एक गलत फैसला जिंदगी बदल चुका था।
अपने माता-पिता को भी खो मैं चुका था
गम थे इतने बताता भी किसको जख्मी था सीना दिखाता मैं किसको।
जब दिन का चैन और रातों की नींद खो मैं चुका थी।
कहने को अपना जब कोई ना बचा था।
अंतर से आई थी तब अंतरात्मा की आवाज।
परमात्मा का जिसमें होता था वास।
यूं लगा मानो किसी ने सर पर रखा हाथ।
अंतर की ज्योति से हो रहा था प्रकाश।
यूं लगा मानो परमात्मा से हो रही हो बात
तुम मिले हो अंधेरे में रोशनी की तरह।
तुम्हारी सृष्टि की सेवा बनेगी मेरी जीने की वजह।
जो मेरे साथ हुआ वह किसी के साथ होने ना दूंगा।
प्रभु जब तू है मेरे साथ तो आगे के जीवन में मैं संघर्षरत रहूंगा।
दीन और दुखियों की मैं सेवा करूंगा।