अंतिम कविता
अंतिम कविता
कोरोना की दौड़ में
सब कोई दुबक कर घर बैठे।
मैं निकल पड़ा घर से बाहर
कोई तो काम दे देता।
इस विपदा के समय में
कोई सहारा दे देता।
आपदा के इस समय में
अवसर तलाश रहा था मैं।
मरने से पहले
उसको (रोटी) तलाश रहा था मैं।
मुझसे उसकी दूरी इतनी
कि उस तक पहुंच पाया न मैं।
मेरे पेट की ज्वाला को
पानी ने शांत नहीं किया।
मेरे मरने पर
किसी ने कफ़न भी नहीं दिया।
मुझको मेरी मूर्खता पर
कोई इनाम ना देना।
मेरी अंतिम कविता पर
कोई ब्यान ना देना।
