अनोखे लम्हे
अनोखे लम्हे
वो वादियां, वो गुलस्तां याद आज भी हैं,
अनकही कहानियां, किस्से बेजुबां आज भी हैं।
वो गलीयां, गलियारे, घूमते थे मिलकर सारे,
वो खेतों के नजारे याद आज भी हैं।
बातें कुछ शेष रह गई कहने से, आंसू शेष रह गए वहने से,
वो खामोशी से करता रहा दिदार अपनों का, लम्हे जुदाई
के वो याद आज भी हैं।
गुजरते हैं, उसी माट्टी से जब
लगती है अजब सी बेचैनी, महसूस होती है
अजब सी चहल पहल, अर्से गुजर चुके
सुदर्शन एहसास जज्बातों में आज भी हैं।
जिस चमन में चहचहाते थे अनेक परिन्दे घौंसलों में अक्सर,
चमन नहीं मगर परिन्दे आज भी हैं।
नहीं दिखता वो प्यार मुहब्बत
उस कदर, यार पुराने कुछ गुजर गए कुछ जिन्दा आज भी हैं।
नहीं फुरसत पूछ ले हाल चाल
इन्सां एक दुसरे का सुदर्शन,
गुजरते थे जिन राहों से अक्सर वो राहें आज भी हैं।
क्यों करने लगा नफरत इन्सां आखिर इन्सां से इस कदर,
पक्षी जो दिखते थे टोलियों में
अक्सर वो टोलियों में जिन्दा आज भी हैं।
सीख ले प्यार की भाषा इन पक्षी पक्षियों से मानव, चुगते
हैं दाने इकट्ठे हो कर जो, कुछ
फांदी तब भी थे कुछ फांदी आज भी हैं।