अनकही बातें
अनकही बातें
वह भी क्या घड़ी थी
जब तू मेरे पास खड़ी थी
वह भी क्या घड़ी थी
जब तू मेरे पास खड़ी थी।
गम कोसों दूर नजर नहीं आ रहे थे
खुशियों के मानो लग गई लग गई झड़ी थी।
वो क्या घड़ी थी
जब तुम मेरे पास खड़ी थी।
शायद मांगी थी मैंने
मन्नत खुदा से बरसों पहले
आज हो गई वह पूरी
अब तक जो अड़ी थी।
वो भी क्या घड़ी थी
जब तू मेरे पास खड़ी थी।

