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अनकहे रिश्ते

अनकहे रिश्ते

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इस विस्तृत संसार में

दूर -बहुत दूर - बहुत दूर

जाने कहां खोते हो तुम

‌‌‌फिर भी

क्यों लगती नज़दीकियाँ

हर पल रहते इर्द -गिर्द

‌‌‌‌भीनी -भीनी महक है आती

कैसी है सूरत तेरी

कैसी‌ है सीरत तेरी

‌‌‌क्यूं होते आभासित यूं

तुम को


क्यों खोजें ये नयना मेरे

क्या पूर्वजन्म का रिश्ता है ?

इस युग में हो रहा आभास

मायावी हो?

धुंधलाई सी आकृति‌ तेरी

कर देती है आतुर सा मन

छटपटाहट सी रहती मन में

तभी तो


रहूं खीचती‌ कोरे कागज पे

आड़ी - टेड़ी सदा लकीरें

‌‌‌अश्क उकेरने को तेरा

शायद

तेरा मेरा अनकहा ये रिश्ता

करता रहता ये मन बावला

हर युग में खोजूंगी मैं तुझ को

और


‌जब तू आएगा वो अनदेखे

बन के जीवन का ऋतुराज

गाऊंगी तब गीत मधुमासी

खिल जाऊंगी तभी मैं

बियावान से इस जीवन में

चहक उठेगा तब बसंत

‌‌‌झूम उठेगी मलय पवन

गुनगुनावेगी मस्त बहारें

‌‌भ्रमरों‌‌‌‌ का होगा संगीत


चाँद भी होगा कुछ मोहक

बिखर जाएगी मधुर चांदनी

मैं महकूंगी लजी लजाई सी

तुमसे लग जो पवन आवेगी

हो जाऊंगी छूकर मदहोश

‌‌‌‌रुक जाएगी ह्दय की धड़कन

विश्वास मुझे तुम आओगे

जन्म जन्म से तेरी ही हूं मैं

तुम ही मेरी अंतिम मंज़िल

‌क्योंकि

ये भासित है मेरे मन को

क्या तुम को भी भासित है

मेरे अनकहे इस रिश्ते को

दे दो अब एक प्यारा सा नाम



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