अनकहे अल्फ़ाज़
अनकहे अल्फ़ाज़
अनकहे लफ्ज़ो में तेरे,
बोलते अल्फ़ाज़ हैं,
तूने हंसी में जो ढके थे,
दिख रहे जज़्बात हैं।
और नमी आंखों में तेरी,
बोलती सब दास्तां,
बात तुम जो कह सके ना,
कर रही उसको बयां।
खामोशी में तेरी मेरी,
कोई तो आवाज़ है,
अनकहे लफ्ज़ो में तेरे,
बोलते अल्फ़ाज़ हैं।
बोलती झुकती निगाहें,
सुन रहा सारा जहां,
खोलती सब राज़ हैं ये,
आज तक जो ना कहा।
इक़रार का ये भी तो कैसा,
एक अलग अंदाज़ है,
अनकहे लफ्ज़ो में तेरे,
बोलते अल्फ़ाज़ हैं।।