अनजान राही से पक्की दोस्त
अनजान राही से पक्की दोस्त
बहुत पुरानी बात बताएं।
पड़ोस के घर में आए ।
एक किराएदार नए।
बिटिया की उनकी एक छोटी। होगी कोई बारह तेरा साल की।
बिल्कुल हमारी बराबरी की।
आए हुए कुछ घंटे ही हुए।
वह बाजार में कुछ लेने गई।
वापसी में रास्ता है भूल गई।
जोग संजोग की बात देखो,
राही थी हमारे लिए अनजान।
दिख रही थी हमको बहुत परेशान
इंसानियत के नाते हमने पूछ लिया तुमको कहां जाना है।
उसने बोला हम आज ही रहने आए हैं।
रास्ता में भूल गई हूं,
अपने मकान का नंबर बताया।
हमारे मुंह पर एक हंसी और एक खुशी की लहर दौड़ गई।
हमने कहा चलो साइकिल पर बैठो हम तुमको घर छोड़ देते हैं।
वह बोली नहीं आप मुझे बता दो मैं चली जाऊंगी।
मैंने कहा नहीं दोस्त अब तो मैं तुमको घर पर ही छोडूंगी।
और साइकिल पर बिठाकर उसको घर छोड़ दिया उसको।
उसके घर छोड़कर अपने घर की ओर मुड़ी।
वह जोर से हंसी बोली अरे पड़ोस में ही रहती हो।
हम आज ही आए इसीलिए नहीं देखा ।ना मैंने नाम पूछा।
मैंने भी सोचा था, यह इतनी अकड़ में है तो मैं क्यों नाम पूछूँ तो मैंने भी नहीं पूछा।
उम्र थी नादान रहते थे अपनी शान में।
कहां से पूछते नाम मगर फिर उसकी हंसी में सब दूरियां दूर करी।
हमने उसका नाम पूछा।
उसने हमारा नाम पूछा ।
फिर तो आलम यह था रोज अपनी चाय और उसकी चाय साथ ही होती
दीवार पर एक दीवार के एक तरफ वह एक तरफ मैं।
पढ़ाई चाय खेलना कूदना सब कुछ साथ में।
इतनी प्यारी सखी बन गई वह अनजान राही ।
आज 55 सालों का साथ अभी तक ना छूटा।
ताउम्र निभाएंगे हम यह पक्की दोस्ती ।
है हमारी दुआ दोस्त खुश रहे तू सदा।
मेरे ख्यालों में मेरी यादों में तू हमेशा बनी रहे।
अब तो मोबाइल से बात बराबर होती रहती है।
एक दूसरे के खबर अंतर हम पूछते रहते हैं।
जगह की दूरियां आई है मगर की दिल की दूरियां कभी नहीं आएंगी
साथ पीहर पहुंचने के प्रोग्राम बनाते रहते ।
ताकि एक दूसरे से मिलना होता रहे ।
नहीं तो फोन मोबाइल फोन और वीडियो कॉलिंग तो है।
ऐसे एक अनजान राही में हमको हमारी पक्की दोस्त मिल गई।
यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे।
प्यारी पक्की दोस्त को समर्पित स्वरचित सत्य रचना
