अंजान हम दोनो
अंजान हम दोनो
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वो बंद नज़रे किए,
आगोश में थे हमारे कभी
बेफिक्रियाँ सी थी सजी
चेहरे पर बदस्तूर उनके।
थम जाती थी सांसें भी देख कर
वो मासूम सा उसका नूर ।।
हौले से छूते थे गालों को वो मेरे
और ढलक आता था माथे
पर पसीना मेरे।।
अनकहे इश्क़ की डोर से
तब बँधे कुछ इस कदर हम थे,
जान कर भी अंजाम, बन
अंजान हम दोनो जी रहे थे।।
जानता था ये दिल इस
सच को बरसों से
कि कल वो किसी और के तो
हम किसी और के होंगे।।
मुद्दतों बाद थी मिली
निगाहें उनसे
ना तब कह पाए थे ना
अब कुछ कह पाए, बस
थम गई थी सांसें कुछ
पल को मेरी ये देखकर की,
वो चाँद का फूल, मेरे चाँद के
बालों में आज भी है ।।