अंगार
अंगार
ना होनी पे ना अनहोनी पे
बस किसी पे चलता नही
समय तय है उसका
दिन अपनी मर्जी से ढलता नहीं
कही काफिले अगर ना मिले
तन्हा सफर तन्हा सही
नहीं रंजिशे दिल में अभी
खुद को खुद ही की पनाह सही
नहीं है आरजू दबी हुई
रिहा है दिल सपनों से
सिलवटे मन की सिमट के मन में
भरा है दिल अपनों से
नजर में नहीं कोई समा जो
इजाजत दे कि करूं जतन
नहीं घटा कि ढूंढ़ लू सावन
जो जरा सींच दे मन की तपन
फिर भी चुन चुन के चुना
मिट्टी में मिला बिखरा वजूद है
कुछ हार गए कुछ मिट गए मगर
लहू में अंगार आज भी मौजूद है।