अल्फ़ाज़ अधूरे इश्क के भाग
अल्फ़ाज़ अधूरे इश्क के भाग


अब मत देख इन नज़रों से , कहीं नजर तो न आने लगा।
ये सुहाना सफ़र ईश्क का ,एक बार फिर कैसे भाने लगा।
बस गुजर जाती हैं रात और बीत जाता है दिन का सफ़र ,
कहीं मेरी तरह तुम्हें भी तो तुम्हारा दिल है मनाने लगा।
अब तो बस एक आश है , ये मोहब्बत की सी प्यास है।
सोचता हूं और भूल जाता हूं क्योंकि मेरा दिल मेरे पास है।
नसीब में तुम नहीं तो कोई गम नहीं क्योंकि ये तुम हो
कोई खैरात नहीं जो आसानी से मिलेगी प्यार की रास है।
ये इंतजार की घड़ियां भी बड़ी अजीब सी चलती है।
रफ्ता रफ्ता चलकर ये रफ्तार एकदम से बदलती है
जब तुम ना थे तो ये रुक गई और जब तुम मिले तो
ये वक्त नहीं बताती, वक्त के साथ वक्त बदलती है।
हे ! हुस्न की नाचीज़ गुलजार तुझे तेरा रांझणा बुला रहा है।
ये प्यार है इजहार की जरूरत है नहीं
क्योंकि वो धीरे धीरे खुद को भुला रहा है।