अलमिरा से झांकती किताब
अलमिरा से झांकती किताब
एक दिन मैंने देखा अलमिरा से झांकती मेरी किताब को,
जिसमें मेरे ही शब्द अंकित थे,
और जो मुझे ही पुनः पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे थे!
मैंने भी पूछ लिया अपनी किताब से की आखिर क्या है खास इसमे ,
तब मेरे किताब के उन पृष्ठों ने मुझे मुझसे मेरा साक्षात्कार करवाए
मेरे दिल के जो एहसास जो मैंने कोरे काग़ज़ पे उकेरे थे,
वो फिज़ा में अपनी खूबसूरती बिखेरे हुए मेरे पास आए,
बिना पूछे ही मुझसे मेरे दिल का हाल बताये,
एक विरहिणी जो तड़प रही है मेरे प्यार में मुझसे दूर ,
उसकी हाल-ए- दिल बयां कर लाए!
मैंने भी फिर उन खाली पन्नों पे अपनी भी हाल- ए-दिल बयां किया ,
मैंने उन पन्नों पे अपनी मेरे प्यार में मुझसे दूर तड़पती
विरहिणी प्रेमिका को शीघ्र- अति- शीघ्र ही आने का आश्वासन देते हुए,
बढ़ चला अपने कर्तव्य पथ पर
फिर एक दिन ऐसा भी समय आया जब,
अलमिरा से झांकती किताब का हरेक पन्ना पूरा हो गया,
यानी हमारे ख्वाब हकीकत बन गए ,
उन पन्नों पे प्यार की अमिट लकीर बन गए।।