अखबार वाला
अखबार वाला
सुबह की पहली किरण
मुझे झिंझोड़ के जगाया करती थी
मेरा सपना मेरी नींद से बड़ा है
यही तो मुझे बताया करती थी
फिर साइकल पर सवार
लोगों को अखबार बेचा करता था
हर कमाई के साथ सपनों की
एक नई नीवं को देखा करता था
कोई छोटू, कोई राजू, कोई चिंटू
कहकर मुझे बुलाता था
उस वक्त तो सिर्फ अखबार वाला
नाम ही लोगों के मुहं से भाता था
आज मेरे पास खुद का गाड़ी
बंगला और खुद का मकान है
बड़े-बड़े शहरों में मेरे व्यापार का
काफी बड़ा सम्मान और नाम है
अब कोई सेठ, कोई सर तो कोई
व्यापारी कहकर मुझे बुलाता है
बड़ा कठिन सफर था अब तक
बीता हुआ हर संघर्ष याद आता है
यूँ अचानक चेहरे पर मुस्कान आयी
जब मैं सुबह घर से बाहर गया क्योंकि
एक अखबार वाला मेरे दरवाजे पर
अखबार रखकर चला गया!
