अकेले रहो खुश रहो
अकेले रहो खुश रहो
हम ज़िंदगी में अकेले ही आते है
और अकेले ही चले जाते है
ज़िंदगी में कोई रिश्ते उपर वाले बनाते है
तो कोई रिश्ते हम खुद बनाते है
ज़िंदगी आगे बढ़ती चली जाती है
कभी अपने बने पराए और कभी पराए बने अपने
ज़िंदगी कभी भी मोड़ ले लेती है
कभी कभी अपने दुश्मन बन जाते है
कभी अपने ही ऐसा छुरा मारते है की
सँभालते सँभालते पूरी ज़िंदगी निकल जाती है
ज़िंदगी बहुत कठोर है
मालूम नहीं कब बदल जाए
ज़िंदगी बहुत परीक्षा लेती है
कहने को तो होता है सबका परिवार
मगर इंसान अकेला ही आता है और अकेला ही चला जाता है
ज़िंदगी है अधूरी और अकेली
इसलिए अकेले रहो
मत रखो किसी पर उम्मीद
क्योंकि दिल टूटने पर बहुत दर्द होता है
अकेले रहो खुश रहो।
