अकेले हैं पर अकेले नहीं
अकेले हैं पर अकेले नहीं
अकेले हैं पर अकेले कहां
साथ है तुम्हारा पर साथ कहां
ख़यालों की दुनिया से आगे कहीं
लगता है निकल गए हम तुम
अल्फ़ाज़ अब कुछ कहते भी नहीं
रहा उन में अब कुछ भी नहीं
निचोड़ लिया, उनमें रस नहीं
ख़ामोशी बन गई है अब ज़ुबा हसीं
नए हैं दायरे, नए आयाम, नई पहचान
अभिव्यक्ति अब नहीं रही मोहताज
घिसे -पिटे उन लफ़्ज़ों के आवाज़ की
बात कोई ज़ुबां तक आए न आए
आंख झपकते ही खुल जाते राज़ सभी
नहीं हम, जो थे-खामोशी अब आवाज़
यही है नई दुनिया, नयाआयाम, नई पहचान
अकेले हैं पर सच मानो, अकेले नहीं
यह गहराई नहीं मोहताज, अल्फ़ाज़ों की !
यह ख़ूबसूरत मुकाम जन्नत से कम नहीं !