अजनबी
अजनबी
अजनबी,
जाने कबसे
तुम अजनबी नहीं रहे..
शायद तबसे,
जब तुम
मेरे मन के;
बंद कपाटों से भी,
धडकनों के अंतिम छोर तक;
अहसास बन,
शिद्दत से;
मुझमे समाने लगे|
हैरान हूँ...
रिश्तों की पेहरन से परे,
कब तुम मेरा
वजूद बन गए...
अजनबी,
अब यक़ीनन;
तुम अजनबी नहीं रहे...!

