नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं


सुनो, शोषकों !
अब बहुत हुआ !
सदियों से सहती आयी हूँ वेदना !
दर्द में बहती आयी हूँ ,
खोकर चेतना !
पर अब नहीं , अब और नहीं,
वेदना की चित्कारें !
अब तो स्वाभिमान पुकारे !
कि बदल जाएगी
सृष्टि ही ,
परिवर्तित हो जाएगी ,
दृष्टि ही !
नारी हूँ मैं ,
कोई वेदना की सरोकार नहीं ..
महिषासुर मर्दनी हूँ मैं ,
कोमलांगी अवतार नहीं !
अब कोई वेदना न दे पाएगा ,
आत्मसम्मान न ले पाएगा !
गर किया दुस्साहस फ़िर भी ,
तो जीवन अमृत न पी पाएगा !!