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Jahanvi Tiwari

Tragedy

4  

Jahanvi Tiwari

Tragedy

अजीब सा रिश्ता

अजीब सा रिश्ता

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एक अजीब सा रिश्ता निभाने चली हूं, 

 जो मेरा है ही नहीं उसे अपना बनाने चली हूं।


जिस गुलशन पर कोई भी हक नहीं है मेरा,

उसको भी हरा भरा बनाने चली हूं ।


परायों की बस्ती में ले कर बसेरा,

मैं इनको भी अपना बनाने चली हूं।


जो उजड़ा हुआ आशियाना मिला था,

फिर से इसको बसाने चली हूं ।


तेरी बेवफ़ाई की यादें संजो कर,

तुझे अपने दिल से भुलाने चली हूं ।


भरोसा, वफा, प्यार और मोहब्बत,

छलावा है, भ्रम है ये दुनिया को बताने चली हूं।


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