अजब हो तुम
अजब हो तुम
किस के ख्यालों में रहते हो गुम
क्यों खोये खोये रहते हो तुम
बिन कहें ही अपनी आखों से
सब कुछ कैसे कह जाते हो तुम
माना की तुम्हे मेरे जरूरत नहीं है
तुम्हे भूलना मेरे बस में नहीं है
हर बार बदल लेता हूँ रास्ता अपना
हर मोड पर मिल जाते हो तुम
बहुत मैंने अपने दिल को समझया
बड़ी मिन्नतो से इसको मनाया
में नहीं चाहता के हो मुझे दीदार तेरा
क्यों मेरे ख्बाबो में आ जाते हो तुम
यह फासले, ये उलझनें ये दूरियां
पर दिल समझता नहीं मजबूरिया
तारे तो है लाखो आसमां में मगर
मेरी अँधेरी रातों का चाँद हो तुम
ख्याल जब भी तेरे आते है
आंसू रुक ही नही पाते है
इतने दर्द सह कर भी कहो तो
कैसे मुस्करा लेते हो तुम