ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
मैं रहता हूँ अब अकेले,
सोच रहा कितने दुख झेले॥
हृदय घायल है शूलों से उनकों मैं सहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ॥
नहीं खोज पाया मैं मरहम,
हो गया खुद पर मैं निर्मम॥
मन में रिसते घावों को नेत्र जल से प्रक्षालता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ॥
कराह उठता है मन मेरा,
दर्द से आंखें भर आती है॥
शर्म नहीं मुझको देवों जो कायर कहलाता हूँ,
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ॥
