ऐसा था मेरा बचपन
ऐसा था मेरा बचपन
कितना हरा भरा
कितना उल्लास भरा ,
कितना संतोष भरा
था हमारा बचपन।
क्या कमी थी
बगीचे में घूमे हम,
पेड़ पर चढ़े हम
अपने हाथ से फल तोड़े।
गुलाबी लाल लीचियों का मज़ा लिया
अलूचे लौकाट अपने से लिये,
खिरनी का ऊँचा पेड़ देखा
छोटी छोटी पीली हरी पकी खिरनी
पेड़ के नीचे से चुनी,
और वहीं खाते भी गये।
पेड़ से अमरूद तोड़कर खाये
और आम भी अपने हाथ से तोड़े,
बिना चाकू के
ऐसे ही लिये, चूसकर खाये।
युकलिप्टस पेड़ के नीचे से
नन्हे नन्हे लट्टू जमा किये,
और उन्हें घुमा घुमाकर नचाया
और देर तक खेलते रहे।
जाड़ों की धूप में
खाट पर बैठ
भाई बहनों के साथ गन्ने चूसे
अपने से मुँह से ही छीले।
बगीचे के हौज में
भाई से तैरना सीखा,
और तैरना आ जाने पर
लगा बड़ी उपलब्धि पा ली।
पपीते के पेड़ के फूल
कान में खोंसे कर्ण फूल बना,
बारिश की बूँदों में नहाये
बारिश में भीगना अच्छा लगता था।
काग़ज़ की नाव बनायी
पाल वाली और बिना पाल वाली,
बारिश के पानी में तैरायी और
उसका तैरना देख खुश हुए।
तरह तरह के काग़ज़ के खेल में
गेंद और दिन- रात भी बनाये,
लुका छिपी भी खेले
भाई- बहिनें के संग।
अब लगता है कितना
आनंदमय था हमारा बचपन।
आज के बच्चों में लगता है
बचपन कहीं खो गया है।
उदासी ने घेरा है
किताबों के भार ने लगता है
उनका बचपन
कहीं छीन लिया है।
बिना खेले ही
बिना प्रकृति के सान्निध्य में
ऐसे ही कमरे में बन्द उदास बचपन
आज बच्चों का बीत रहा है।
