ऐसा मुमकिन है कभी....
ऐसा मुमकिन है कभी....
ऐसा भी मुमकिन है कभी
कि रोशनाई में डूबे
खामोश से मेरे अल्फाज़,
कभी खुद ही,
दुनिया की नज़र से टकराएं ।
ऐसा भी मुमकिन है कभी
कि मेरे दिल के उदगार
जो कभी जुबां तक न आये
कभी मेरी आँखों मे पढ़े जाएं।
ऐसा भी मुमकिन है कभी
कि बात मेरे भी हक़ की हो
और कुछ देर को ही सही
मेरे फ़र्ज़
किसी के जेहन में न आएं।
ऐसा भी मुमकिन है कभी
कि मैं जी भर के जी लूँ आज में
कल क्या होगा ?
एक पल को ही सही,
ये चिंता न सताए।
ऐसा मुमकिन है कभी
की अगर हो
मुस्कुराहट मेरे लब पे
तो वो मुस्कुराहट हो सच में।
न कि ग़म छुप जाए
मुस्कुराहटों के कवच में।
ऐसा मुमकिन है कभी
कि हर इंसान
एक ही चेहरे से पहचाना जाए।
यूँ बन के बहरूपिया
हर पल,
चेहरे न बदलता नज़र आये।
