ऐनक का पर्दा
ऐनक का पर्दा
ऐनक के पीछे से झाँकती,
सबके मन को भांपती।
छलक जाती कभी / कभी,
दूर जाने वालों की याद में।
लौट कर न आने वालों की याद में।
शूल से दर्द को सलीके से छुपाती,
ज़ुबान झूठ भी बताती, कहानी दिल की।
यह दोनों मगर, सच ही बताती।
वीरान, बुझी, आँखों से अश्क यूँ ही नहीं लुढ़क जाते।
जशन है, या है ग़म भारी,
दास्ताँ हर एक बताते।
ऐनक के पीछे से झाँकती दो आँखें,
कहानी ज़िंदगी की सुनाती आँखें।
कितनी ठोकरें, कितने धोखे खाये।
पास रह कर भी जो अपने न हो पाये।
ख़ैरियत दूर से पूछने वालों की,
गले लग छुरी भौंकने वालों की।
ऐनक के पार देखती आँखें।
सारे दुःख / दर्द समेटती आँखें।
सँवर जाती काजल की पतली सी लकीर से,
धड़कन बन जाती माशूक़ की।
चोरी / चोरी दिल का हाल बताती।
फेर लेती हसीना जब नज़र,
धड़कन माशूक़ की रुक जाती।
कैसे / कैसे क़िस्से बनाती ??
जब थी बिन ऐनक की, कजरारी / प्यारी आँखें ।
