ऐ नदी..!
ऐ नदी..!
ऐ नदी...!
जानती हूँ
आसा नहीं है
आऽऽह से आहाऽऽऽ
तक का सफ़र...!
नदी हो
या कि नारी
सफ़र आसान
कहाँ होता है..?
दोनों को ही
मार्ग में आये
अवरोधों को स्वयं
काट छाट कर
राह बनाना पड़ता है
कहीं जंगल
तो कहीं पहाड़
कहीं सख़्त समतल ज़मी
दोनों ही संघर्षरत्त
अपने अस्तित्व को बचाने
और बनाने में..
जानती हूँ..!