अहसास औरत के औरत होने का
अहसास औरत के औरत होने का
एक औरत के भी कुछ सपने होते हैं
जिसमें वह उड़ना चाहती है
अपने हौसलों के पंख से
आसमान छूना चाहती है
दुनिया को बदलने का
अदम्य वो साहस रखती है
बिना किसी सहारे के
मुट्ठी में तारें भरना चाहती है
गुम हो जाती है उसकी ताकत
जब दुनिया इल्जाम लगाती है
घट जाती है उसकी हिम्मत
जब दुनिया उसको छलती है
अपने अनदेखे पंखों पर
वह यकीन करती है
बिना सहारे दौड़ भी जाती है
मंजिलों को ढूंढ लेती है
उधड़े अतीत की यादों को
अपने विश्वास की सुई से
हिम्मत का धागा पिरोती है
जिंदगी जीने का वो हौसला रखती है
कमजोर औरत बनना
भूल जाना चाहती है
बस एक औरत और
इंसान बनकर जीना चाहती है
अपनी खोई बिखरी ताकत को
बस समेटना चाहती है
आगे वो बढ़ना चाहती है
वों तो बस जीना चाहती है
खुद औरत होने के साथ-साथ
अपने अंश रूपी औरत को भी
फलने फूलने देना चाहती है
उसका अस्तित्व बचाना चाहती है...