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Manu Sweta

Tragedy

3  

Manu Sweta

Tragedy

अग्निपरीक्षा

अग्निपरीक्षा

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आखिर कब तक अग्निपरीक्षा

कब तक होगी मेरी समीक्षा

क्या इच्छा है हे पुरुष

क्यो मौन तुम्हारा पौरुष


आखिर कब तक होगा मेरा दमन

कब होगा मेरे अस्तित्व को नमन

अपने दम्भ में मुझे सताते

हर बार मुझे ही गलत बताते


कितना भी हो जाऊं समर्पित

तन मन अपना तुमको कर दूं अर्पित

फिर भी मैं तुम्हारे लिये अनजान हूँ

जिसे दुःख न हो वो पाषाण हूँ


कितने मुझको तुमने घाव दिए

मैने भी हँसकर वो सब सहन किये

फिर भी तुमको आई न शर्म

कब टटोलेंगे तुम अपना मर्म


ये उपेक्षा अब सहन नहीं होती है

कई इच्छाएं घुट घुटकर रोती है

अब बंद करो इन खोखले रिवाज़ों को

धर्म के नाम पर उठती आवाज़ों को


अब हम सबको होना होगा एक

अब तुम भी जगाओ अपना विवेक

अब खोया स्वाभिमान पाना होगा

अपनी क्षमताओं को जगाना होगा


अब और अग्निपरीक्षा नहीं होगी

अब और समीक्षा नहीं होगी।


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