अबॉर्शन
अबॉर्शन
मैं तुम्हें अनुभव कर रही थी
अंदर से छू रही थी
नन्हें हाथों और पैरों से।
छोटी छोटी आंखों से
कोशिश कर रही थी मैं,
इस दुनिया को देखने की
तुम्हारी गोद पाकर मैं
धन्य हो जाती माँ।
ऐसी मैंने क्या गलती की
मुझसे तू क्यों रुठ गई?
अंदर ही अंदर तुझसे ,
ममता की डोर छूट गई?
तेरी चीख संग ,मेरी चीख
क्यों भीतर ही भीतर टूट गई?
तेरी गोद में खेलने फिर से मैं,
नया जन्म लेकर आऊंगी
आने देना तब तुम मुझको,
कोई गलती अब न दोहराऊँगी
माँ लड़की का जन्म लेना
अभिशाप क्यो बन गया
अबॉर्शन करना भी तो बड़ा
अपराध है,हमारा जन्म लेना
संस्कृति का ही उन्नयन है
बेटी पराया धन नहीं सँस्कार है
युगों युगों से तो बेटी ही तो
परिवार की आन , शान है।