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Shikha Pari

Tragedy

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Shikha Pari

Tragedy

अबोध सच

अबोध सच

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ये चेहरा ढकती है

डरी सहमी सी बैठी है

कचहरी में चल रही चर्चा इसकी है

सुनते हैं इसके साथ ऐसा हुआ

ऐसा नहीं वैसा भी हुआ


ये जो चुपचाप बैठी है

ये इसकी ख़ामोशी है

कहाँ से आई है

कचहरी की कहानियों

में छाई है

न्यूज़पेपर का फ्रंट पेज

पे इसकी ही कहानी आयी है


बलात्कार हुआ उसका

कोई नहीं सिसका

भीड़ ने नोचा 

चील कुत्तों से बच के आयी है

ये वही है जो कचहरी में छाई है


अब समाज है बिदकता

आदमी यहाँ हँसता

कैंडल मार्च की बाढ़ सी आयी है

होती हर जगह रुसवाई है


वो मिन्नतें है करती

कोई सुनने का नहीं सोचता

सब बातें हैं बनाते

सहानुभूति झूठी दिखाते


जिन भेड़ियों ने नोचा

वो शान से घूमता

जो नुच गया

वो चुप रहता


ये दुनिया की बिरादरी

न लेगा कोई अब ज़िम्मेदारी

यहाँ पैसा है महँगा

इंसान है सस्ता


जब ऐसी फ़ाइल है बढ़ती

इंसानियत है मरती

यहाँ ख़रीदे हुए सब है

तू क्यों नहीं समझती


दम तोड़ती हुई वो बोलती

अब कभी नहीं होगी ये गलती

न्याय के लिए तरसती

हाँ वो है एक लड़की




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