अबला नहीं मैं
अबला नहीं मैं
अबला -अबला कहकर
क्यों मुझे पछाड़ रहे हो।
मेरा वजूद मिटा कर तुम
क्यों अपना घर उजाड़ रहे हो।।
ये अबला तुम से आगे होगी
दिल की अपनी करने तो दो।
आसमान को छूते इरादों को
चार दीवारी में घुट कर मरने ना दो।।
आँखें ना दिखाओ तुम
नजरिया बदल कर तो देखो।
शान में चार चाँद लग जाएंगे
साथ चल कर तो देखो।।
नारी बिन ना वजूद तुम्हारा
फिर गुमान किस बात का तुम्हें।
एक काम भी औरत बिन ना बने
क्या पता नहीं अपनी औकात का तुम्हें।।
उतार फेंको बोझ अच्छी सोच का
आखिर कब तक यूं लिए फिरोगे।
उस दिन अक्ल तुम्हें आ जानी है
'ओमदीप' जिस दिन औंधे मुँह गिरोगे।।