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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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अबकी होली में

अबकी होली में

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अबकी होली में

न रंग

न अबीर

न गुलाल

एक सूखे दरख़्त के तने से

सिर टिकाए मैं

देख रहा हूँ खुद को

सामने बहती हुयी दरिया में

बिल्कुल नँगा नहाते हुये

होली में

होली से बेख़बर।



ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

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