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Deepmala Pandey

Abstract

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Deepmala Pandey

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अभिमान

अभिमान

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दो सबको मान-सम्मान

मत करो अभिमान

मिट जाता है खुद का मान

भिन्न भिन्न है व्यवहार सबके


भिन्न-भिन्न है भाव

मन मस्तिष्क के समतुल्य

है सब के स्वभाव

मत करो धन दौलत का अभिमान


गरीब श्रमिक का

क्या ? कोई मान नहीं

उनके हिस्से क्या ?

मीठी मुस्कान नहीं


मिटा सकते हो तुम 

दौलत से बहुत कुछ

पर मिटता किसी का

स्वाभिमान नहीं


पतन का द्वार खुल जाता

जब मन में अभिमान आता

कर्म ऐसा करो

बने अलग तुम्हारी पहचान

सफल तभी बनोगे

जब छू ना सके तुम्हें अभिमान।


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