ना जाने किसका इंतजार है
ना जाने किसका इंतजार है
ना कभी देखा था मैंने ऐसा मंजर
खुद को पिंजरे में पंछी जैसा कैद
बस इस बुरे वक्त के गुजरने की
कोशिश कर रहा हूं खुद को समझने की
शायद कोई तो हल होगा
यही वजह है जिंदा रहने की
मिथ्या रुपी जीवन में एक आस है
देख मंजर रुकती नहीं अश्रुधार है
ना जाने किसका इंतजार है ....
चारों ओर बेबसी की घात है
ऐसा लगता जैसे मौत बहुत पास है
एहसास ना किया था कभी अकेले रहने का
समय है थोड़ी हिम्मत रखने का
आज खुद की गलतियों से अजीब हो गए
दूरियाँ इतनी है फिर भी करीब हो गए
यही तो वक्त की मार है
ना जाने किसका इंतजार है .....
मेरी आवाज़ भी गूँजने लगी है
अब तो दीवारें भी पूछने लगी है
यह खामोशी भी बेचैन करने लगी है
पास न जाओ अभी किसी के
सब यही कहते हैं एक दूसरे से
जाने और कितने सलीके सीखने बाकी है
क्या ?? जीवन का सार है
ना जाने किसका इंतजार है.......