माँ
माँ
शब्दों के चक्रव्यूह में
कुछ इस तरह घिर गई
पता न चला कब
सुबह से शाम हो गई
मिला न अर्थ उस शब्द का
क्योंकी ...
शब्दों में उतारू कैसे
उसके भावार्थ को
वो हमे सिखाते-सिखाते
अब बूढ़ी हो गई
हम सब भूल कर
स्वार्थ ईर्ष्या क्रोध के
घेरे में घिर गये
मुझे परेशान देख
उनकी आँखें नम हो गई
अपने पास बुलाया
गले से लगाया और
कहने लगी ...
मेरी बेटी थी कल तक तू
अब किसी की " माँ "हो गई
बस समय बदल गया
इसलिये ...
सुबह से शाम हो गई
अचानक एक भंवर सा आया
मैने सोचा
इस शब्द में तो "ब्रहमांड" समाया
फिर एक बार मेरी आँखो में ......
आंसूओं का समन्दर उमड़ आया ...
