फूल
फूल
सुबह की पहली किरण
मेरे उपवन पर पड़ती है
तो चेहरा गुलाब सा खिल जाता है
तितलियों और भौरों को झूमता देखकर
मेरे मन का उदास आईना भी
मुस्काता है
खामोश मोहब्बत में
अकसर जब शब्द खो जाते हैं
तब फूलों से ही
इजहारे मोहब्बत कर पाते हैं
दिल के पन्नों के बीच जो फूल रह जाते हैं
सूखने के बाद भी
प्यार की खुशबू में सराबोर नजर आते हैं
फूल तो कांटों के संग जीवन बिताते हैं
फिर भी हर पल मुस्काते हैं
और हमें भी
स
ुख रुपी फूल दुख रूपी काटो जैसा
जीवन जीना सिखाते हैं
बिछड़कर जो फूल
अपनी शाख से गिर जाते हैं
वह भी इंसान के मन को भाते हैं
कभी भगवान को चढ़ाए जाते हैं
कभी गुलदस्ता बन मन को भाते हैं
कभी शहीदों का मान बढ़ाते हैं
कभी पार्थिव शरीर में चढ़कर
श्रद्धांजलि रुपी आंसू बन जाते हैं...
आओ हम सब मिलकर
फूलों से बन जाए
भेदभाव बैर को मिटाकर
प्रेम रूपी माला में गुथ जाए
बाग रूपी इस संसार का
कोना कोना महकाएं।