अभिलाषा
अभिलाषा
बस उर में अभिलाषा यही है
तेरी सेवा में रम जाऊँ...
हे भारत माँ ! तुझ पर अर्पण
अपना जीवन कर जाऊँ...
विपदाएँ जो झेल रही तू
हँस-हँस अपने सीने पर
दल दूँ उनको शत्रु-सरीखा
कर्म - क्षेत्र में डट जाऊँ
हे भारत माँ ! तुझ पर अर्पण
अपना जीवन कर जाऊँ...
पाठ यही सीखा हमने
गांधी, वीर जवाहर से
आराम को करके हराम
कुछ करूँ या फिर मर जाऊँ
हे भारत माँ ! तुझ पर अर्पण
अपना जीवन कर जा
ऊँ...
जातीय-प्रांतीय भेदो से
मैं लड़ूँ यहाँ निर्भय होकर
जां देकर भी तुझको माँ
आतंकवाद से छुड़वाऊँ
हे भारत माँ ! तुझ पर अर्पण
अपना जीवन कर जाऊँ...
कर्म क्षेत्र में डटूँ अविचल
तूफानों से ना घबराऊँ
तेरे चरणों की सौगंध माँ
लेशमात्र ना डिग जाऊँ
हे भारत माँ ! तुझ पर अर्पण
अपना जीवन कर जाऊँ...