अभी
अभी
रुख़सत हुए हैं महफ़िल से, फिर लौटेंगे कभी,
गुज़रते वक़्त न थाम दामन, जाने दे मुझे अभी।
मयकदों की ख़नक, जाम का दिलकश सुरूर,
मैं ज़रा भटक जाऊँ तो क़दमों का क्या कुसूर?
मयक़शी के आलम में मिलता है, क़रार थोड़ा,
थामे रखो यादें और न उठाओ ये वलवले अभी।
महफ़िल में कहकहे कभी तो कभी कहकशाँ हैं,
महफ़िल गर जो उठे फिर रह जाते बस निशाँ हैं।
महफ़िल भी है जा पहुंची अपनी आखरियत पर,
यूँ बैठ के करना क्या है कि बस चल-चले अभी।
शायद होश में था या फिर मय का पूरा वार था,
तू सामने खड़ी थी और सुर्ख़ ये तेरा रुख़्सार था।
मेरे दिल को होगा पूरा यक़ीन तेरे आने का तभी,
चल क़दम बढ़ा आगे और लग यूँ मेरे गले अभी।