अभी कहाँ..
अभी कहाँ..
अभी कहाँ हम ठहरे हैं,
अब कहाँ अश्क़ खारे हैं,
हम अना के मारे हैं
शहर से तेरे न गुजरे हैं।
टूटे हैं सच है मगर
अभी कहाँ हम बिखरे हैं।
होंगे तेरे आशिक़
जो तेरे दर पे ठहरे हैं।
बज़्म यहाँ हमारी है,
अभी ग़ज़ल पे उतरे हैं।
अभी कहाँ हम ठहरे हैं,
अब कहाँ अश्क़ खारे हैं,
हम अना के मारे हैं
शहर से तेरे न गुजरे हैं।
टूटे हैं सच है मगर
अभी कहाँ हम बिखरे हैं।
होंगे तेरे आशिक़
जो तेरे दर पे ठहरे हैं।
बज़्म यहाँ हमारी है,
अभी ग़ज़ल पे उतरे हैं।