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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

Abstract

अब तलक !

अब तलक !

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जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 

की अब भी बहती है अपनी 

ही गति से होकर बिल्कुल 

बेखबर अब तलक।


होकर बिलकुल बेखबर 

दर्द से मेरे अब तलक

और जो है बेअसर मेरी 

छुवन से है अब तलक।


मगर जिन्दा रखे हुए  

है मुझे अब तलक

वो जो अपनी शीतल 

छुवन से मुझे आज़ाद  

करती है दुनिया की 

हर एक तपन से अब तलक।


उसकी खामोश उपस्थिति 

ही करती है तर्क-वितर्क 

मुझ से अब तलक।

जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 

की अब भी बहती है अपनी 

ही गति से होकर बिल्कुल 

बेखबर अब तलक ! 


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