Sulakshana Mishra

Abstract

4.9  

Sulakshana Mishra

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बदले हालात

बदले हालात

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वो हालात कहाँ से लाऊँ

वो जज़बात कहाँ से लाऊँ

जो बयाँ कर दें हकीकत मेरी

वो अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ ।


है वही ज़ुबाँ मेरी

पर ये रुक क्यूँ गयी?

है वही नज़र मेरी

पर ये थम क्यूँ हुई ?


जिन आँखों में सजते थे

इंद्रधनुष कभी

कब फैल गयी उनमें

ये गहरी काली स्याही ?


कब सीख लिया मैंने

यूँ हालात से झुकना।

कब सीख लिया मैंने

यूँ घुट घुट कर जीना।


अच्छा था शायद

वो बचपना मेरा।

बड़ी महँगी पड़ी मुझे

मेरी ये उम्र दराज़ी।


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