हे विष्णु, उत्तर दो !
हे विष्णु, उत्तर दो !
विष्णु, तुम से पूछ सकता हूँ
बाकी तो दरवाजे है नाकाम।
दरवाजे दोषास्पद हो, या हम,
उत्तर तो अब बस तुम से ही मिले !
क्या हमारे माँ बाप ने कभी
हमें ऐसी जिंदगी बक्शी थी ?
कोमल पाँव ना आंगन निहारे,
और बंद पड़े हो मोहल्ले-जिले!
विष्णू, विषाणु के लिये
ना बहाओ अपने आंसू।
सृष्टी आपका है निर्माण,
तोड़ना क्या भला ऐसे ये किले ?
आंसू समझदार होते है देवा,
टपकते नही उनके लिए ,
जो अदृश्य निर्जीव हमे,
हाल फ़िलहाल में मिले।
मासूम आँखों के कोनो का भी,
तमाशा नही बनाते आंसू,
जो बरसे रहे आपके लिये,
बशर्ते, प्रायोजित ना हो सिलसिले।
मै रोऊंगा नहीं ऐ विष्णु,
गिड़गिडाना भी क्या अभी ?
आंसू तो टपक कर है अदृष्य,
लपेटे नक़ाब, होते हैं गिले।
ये जँहा तेरा, पृथ्वी तेरी,
तू ही धर्ता,तू ही कर्ता।
जवाब एक देना देवा,
किसी भी जहां में जब हम मिले।
मेरे पुत्र का क्या दोष था ?
परिपक्व ही जब गलत था,
क्या तुम्हारा ये है कहना,
कोमल ही कठोर खरोंचे सिले ?