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Suhas Bokare

Abstract

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Suhas Bokare

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ए मेरी प्रॅक्टिकल जिंदगी

ए मेरी प्रॅक्टिकल जिंदगी

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जीने के लिये, 

चमक ढुंढती, 

जिंदगी निकली 


शायद ये, वो

मेरी आसान राह 

का सारथी ! 


मांजा उलझता चला, 

पतंग भी गायब

सफेद आकाश से  


पर जीने की उम्मीद, 

गीत-गान गलत 

सारथी के परमार्ष से  


उधार की जिंदगी, 

से पुरा करे, 

बंदगी सी जिंदगी


भूल गयी खुद, और,

अब उस सारथी की सुने तो -

भाई यही तो है जिंदगी 


भूल गयी 

अर्जुन का सारथी 

कंस नही विष्णु है 


दिल की धडकने 

दिमाग के तारो से 

स्पर्श ऋणी सहिष्णु है


ज़ो सोच खो गयी 

खो दी तालमेल, रह गया 

कृत्यहीन आवर्तन ! 


सम शिवलिंग 

सोच है दर्शन, 

कृष्ण कृत्य, बस परिवर्तन 


ए जिंदगी, बुझो तो जानू, 

अंत मे सफर के कौन है वो

जो अपने दर्द सुनाये


पर्दानशी रगों में तब 

ढूँढता रहता है अपनी जगह

वो बेचारा,आप जहाँ जाये 


ढूंढता हुआ, वो दिवाना,

तर्कश पिवीत, ना कोई निशाना 

'दिमाग' का दिल -दर्दीयांना


कहता है, रोता है, ए जिंदगी 

तू परिभाषाहीन ही सही,

मुझे मेरा आशियाना चाहिये 


तेरे लिये नहीं सही, 

पर मेरी सुन ले ए जिंदगी, 

मुझ दिमाग को ठिकाना,

होना चाहिये।


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