अब कुछ बाकी नहीं
अब कुछ बाकी नहीं
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मयखाने पड़े है सूने मन के अब यहाँ कोई साकी नहीं
मेहमान बन के आयी थी खुशियाँ अब कुछ बाकी नहीं
महफ़िलें उजड़ी उजड़ा सारा खुशियों का मेला
ज़िंदगी की आस भी अब ज़िंदगी में बाकी नहीं
होंठों पे मुस्कान खिलायें बेबस हँसी रो रही थी
राज़-ए-मुस्कान में अब वो जान ही बाकी नहीं
महकते थे अहसास जी भर के हसरतें खिलखिलाती थी
ना जानें क्यों ज़िंदगी में ज़िंदगी की साँसें अब बाकी नहीं?