STORYMIRROR

Deepali Mathane

Tragedy

3  

Deepali Mathane

Tragedy

अब कुछ बाकी नहीं

अब कुछ बाकी नहीं

1 min
309


मयखाने पड़े है सूने मन के अब यहाँ कोई साकी नहीं

मेहमान बन के आयी थी खुशियाँ अब कुछ बाकी नहीं


महफ़िलें उजड़ी उजड़ा सारा खुशियों का मेला

ज़िंदगी की आस भी अब ज़िंदगी में बाकी नहीं


होंठों पे मुस्कान खिलायें बेबस हँसी रो रही थी

राज़-ए-मुस्कान में अब वो जान ही बाकी नहीं


महकते थे अहसास जी भर के हसरतें खिलखिलाती थी

ना जानें क्यों ज़िंदगी में ज़िंदगी की साँसें अब बाकी नहीं?



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy