अब इंतजार कैसा है
अब इंतजार कैसा है
अपने कंधों पर जीवन का बोझ लेकर ।
वह चल रहा नित, अंजाम से बेखबर।।
झोपड़े महल में, महल अट्टालिका बना।
मन अम्बर उड़े, और तन मिट्टी का बना।।
राह थक रुक जाती, राही न कभी हारा।
लगता है समेट लेगा दामन में जहां सारा।।
कहाँ तक ये लालसा, इसका विस्तार कैसा है।
जीवन की कैसी विडम्बना, ये इंतजार कैसा है।।
अमर हो गए प्रेम पथ पर राधा मीरा लैला मजनू।
आज इश्क हर दिल में बनके चमकते हैं कई जुगनू।।
इश्क का आशियाना हमेशा पाक गुल से गुलजार रहा।
प्रण किया प्राण दिया हिंसा से न कभी सरोकार रहा।।
इस रिश्ते के निष्कलंक ताज में आज दाग हो चला है।
शर्मसार है आज जमाना, वो जज़्बात खाक हो चला है
सिसकती अस्मत बेजान होकर, यहां इख्तियार कैसा है
दरिन्दगी ने दम घोटा, फिर न्याय का इंतजार कैसा है
जग जीत गया रहनुमाई से जग न जिन्हें बिसार रहा।
पर उपकार, सत्य अहिंसा उनका स्नेह हथियार यहां।।
निश्छल नीति से नियति डोला नियत पर आंच न आया
राज उनका दिलों पर, अहा! कौन ऐसा साम्राज्य पाया।
दुराचारी आज बढ़ रहे, जग से अमन मिटाने के लिए।
दुर्भावना से राज गढ़ रहे, सर काटा खजाने के लिए।।
आतंकी खा रहा बिरयानी, शहीदों का सत्कार कैसा है
दर दर भटक रहे स्व परिजन उनका इंतजार कैसा है।।