Ritu Agrawal

Inspirational

4.5  

Ritu Agrawal

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अब बस

अब बस

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मैं एक औरत हूँ।

एक हाड़ - माँस की प्राणी।

जिसमें प्राण के साथ, 

भावनाएँ भी है।

पर तुम्हारे लिए मैं एक देह हूँ।

सिर्फ़ एक खिलौना मात्र

जिससे जब चाहा प्यार किया।

जब चाहा मार दिया।

और फिर कहते हो 

अरी प्यार करता हूँ तो

मार भी सकता हूँ।

पुरुष को काम का दवाब है

चाहे पति ऑटो चलाए

या दुकान या कम्पनी।

पर उसको तनाव रहता है।

तो घर में बीबी एक ऐसा जीव है

जो चुपचाप खूँटे से बंधी रहती है 

और लाख प्रताड़ना सहकर भी

 कुछ नहीं कहती है।

जिस पर पति का बस आसानी

से चलता है

क्योंकि वो उसकी संपत्ति है

सारा जहां यही कहता है।

पर अब बस...

अब और नहीं।

यदि ऐसे ही सहती रहूँगी,

मर- मर कर जीती रहूँगी,

तो अपनी बेटी को क्या कहूँगी

उसे क्या सीख दूँगी?

नहीं अब और नहीं!

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाकर

मैं स्वाभिमान के साथ जीऊँगी

इतनी सस्ती नहीं है मेरी जान

उसे यूँही व्यर्थ नहीं दूँगी।

लडूँगी अपने भविष्य के लिए

अपना कल संवारूँगी।

अबला नहीं, सबला बनकर

अपने हाथों अपनी ही नजर उतारूँगी।

मैं जीत कर रहूँगी

अब हार नहीं मानूँगी।

अब हार नहीं मानूँगी।।



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