"आज़ादी का 75 वां अमृत महोत्सव"
"आज़ादी का 75 वां अमृत महोत्सव"
असंख्य बलिदान देकर के,
हमने ये दिन पाया है,
75 वां आज़ादी का हमने जश्न मनाया है,
कितने ही माँ की छाती के,
लालों को हमने गँवाया है,
कितनी ही सुहागिनों का सुहाग उजड़ा,
जब यह दिन पाया है,
कितने बच्चे अनाथ हुए,
क्या हमने हिसाब लगाया हैं,
कालजई बने सपूत तब,
जब तिरंगा फहराया है,
इतिहास को भी जानो तुम,
लक्ष्मीबाई, तात्या तोपे, मंगलपांडे ने,
आज़ादी की अलख जगायी थी,
हमारे दिलों में दबी चिंगारी सुलगाई थी,
भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव ने,
बलिदानी जामा पहना था,
नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने,
"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा"
का नारा देकर क्रांतिकारियों में जोश भरा,
लाला लाजपतराय ने लाठी खाकर,
अंग्रेजों को ललकारा था -
"मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी
ब्रिटिश सरकार के ताबूत में
एक-एक कील का काम करेगी"
यूँ ही नहीं मिली आज़ादी,
इसको भी जानों तुम,
आज़ादी की कीमत पहचानों तुम,
नेहरू, गाँधी, पटेल, गोखले ने,
अहिंसा का दामन थाम,
अंग्रेजों की नींव को हिला दिया,
ये 1942 में "अंग्रेजों भारत छोड़ो" के नारे ने,
उनकी नाक में दम किया,
26 दिन के महात्मा गाँधी के आमरण अनशन ने,
अँग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया,
असंख्य बलिदानों के बाद हमने ये दिन पाया है,
आज़ादी पाकर के भी हमने,
अपने भाईयों को गँवाया है,
लाहौर, कराची, रावलपिंडी का विभाजन कर,
घाव दिल में लगाया है,
नासूर बन जो रिस रहा,
जीवन भर का दर्द अपनाया है,
आँखें छलक जाती हैं,
जब सुनते वीर गाथाओं को,
भुजायें फड़क उठती हैं,
सुन उन ललकारों को,
सिसक उठती हैं बहनें,
ले राखी के तारों को,
रोती आज अबलायें,
जिनकी सिन्दूरी माँग उजड़ी,
बिलख उठती हैं मातायें,
पुकार अपने लालों को,
आज़ादी की कीमत पहचानो,
इतिहास को भी जानो तुम,
घाव कितने लगे दिल पर,
यह भी तो जानो तुम,
असंख्य बलिदान देकर के,
हमने यह दिन पाया है,
आज़ादी का 75 वां "शकुन",
अमृत महोत्सव मनाया है.