Archana Saxena

Inspirational

4.5  

Archana Saxena

Inspirational

आयेंगी बहारें

आयेंगी बहारें

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आती रही हैं बहारें सदा ही

आती रहेंगी बहारें सदा ही

न भूलो मगर पतझड़ की रवानी

उसकी भी सुन लो जरा सी कहानी


भौरों की गुंजन फिर गूँजती है

लताएँ भी डाली को फिर चूमती हैं

प्रकृति करे जैसे सोलह श्रृंगार

झूमी चली आ रही यों बहार


मगर ये भी सच है कोई दिन न रहते

तेरे मन के जैसे मौसम बदलते

कड़ी धूप होगी वहीं शाम भी है

नहीं कुछ भी स्थिर ये पैगाम भी है


समय का ये पहिया सदा घूमता है

चूर मद में हो के तू क्यों झूमता है

तेरी भी इन्सां यही है कहानी

बहारें हैं आनी, मगर फिर हैं जानी


पटा वृक्ष है जो घनी पत्तियों से

खड़ा ठूंठ होगा रहित पत्तियों से

हिम्मत न तोड़ेगी तरुवर की टहनी

पता है उसे वो तो फिर है खिल जानी 


बहारों का क्या है आती रहेंगी

गुलशन में गुल भी खिलाती रहेंगी

महकता है मौसम और खिलती हैं कलियाँ

खुशबू वो अपनी बिखराती रहेंगी


बहारें हों पतझड़ हो तू मत बदलना

स्थितप्रज्ञ जैसे अटल हो के चलना

समय हो कठिन या सहल सा हो जीवन

दुखों की हो बदरी या सुख का सावन


विजय खुद पे पाकर जो जीवन सँवारे

उसे क्या फिर पतझड़, उसे क्या बहारें

पतझड़ के मौसम से शिकवा न होगा

आती रहेंगी सदा फिर बहारें


   


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