STORYMIRROR

JAI GARG

Romance

2  

JAI GARG

Romance

आश्वस्त (log 14)

आश्वस्त (log 14)

1 min
3.2K

बेहद ख़ुशनुमा थी ज़िंदगी तुम्हारे आने के बाद

मदहोश नजदीकियों का यूँ खुल कर सामने आना

सीमाएँ टूटती रही क़ायदे, पर्दों का सबर न था

छाया भी उभरी लकीरों को चूम कर निकल गई,


मदभरी अँगड़ाइ कुछ ऐसे तक़ाज़ा करने लगी;

जनून था, चाहत परवान चढ़ी मुहोबत के नाम!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance