आशियाना
आशियाना
मैं आज भी खत लिखता हूँ
उस पते पर
जो मिलकर बनाया था हमने
कुछ बे-इंतेहा हसीन पलों को
जहाँ बिताया था हमने
वो जगह...
अब जहाँ वीराने के सिवा
कुछ भी नहीं
वो दरवाज़ा जिसे मुड़कर
तुमने देखा
फिर कभी नहीं
वो दीवारें अब भी
तुम्हारी बातें करती हैं
तुम लौट आओगे
ये मुरादें करती हैं
वो फर्श पर
तेरे पोषीदा से
पग के निशान...अब भी हैं
किसी कोने से आती
पायल की खनक...अब भी है
जिसके सामने बैठकर
तुम संवरती थी
उस आईने को
तेरा इंतज़ार...अब भी है
फिर आ जाओ के वो जहाँ
फिर से बस जाए
उस वीरान आशियाने को
उसकी रूह मिल जाए!!