आरजू
आरजू
हाथों में है जो हाथ मुक़द्दर सँवर गये
कहने में सच अभी ये जरा सा हम डर गये।
खिंच ले ही आई मुझे ये खनकती हुई चूड़ी
बढ़ती रही तू आगे थोड़ा हम ठहर गये।
हाथों में लाल-लाल चूड़ियों भरी रही
वो खनकाती चूड़ियों से पागल ही कर गये।
क्यों हाथ मेहँदी से रचायें नहीं अभी
आए थे दिन बहार के यूँ ही गुजर गये।
हथेली पे "नीतू" नाम तू लिखना सही- सही
इस आरजू में चाँद ज़मी पर उतर गये।